मालदीव के साथ जो जरूरी है, वह होना चाहिए
जय प्रकाश पाराशर
एक ट्रेंड चल रहा है कि बड़े देश अपने जियोस्ट्राटेजिक लक्ष्य हासिल करने के लिए छोटे देशों में एक पोलिटिकल लीडर को तलाशते हैं, उसमें निवेश करते हैं, उसे शक्तिसंपन्न होने का भ्रम देते हैं और दूसरे बड़े देशों के खिलाफ खड़ा कर देते हैं।
यह ठीक वैसा ही है जैसे शेर का शिकार करने के लिए मेमना बांध दिया जाता है। यह युद्ध दूसरे की जमीन पर कम लागत में होता है।
अमेरिका ने जेलेंस्की को ढूंढा, यूक्रेन में रूस विरोधी भावनाओं भड़काया, साथ होने का एक भ्रम दिया और रूस से भिड़ा दिया। आज यूक्रेन तबाह हो गया है।
ईरान ने हमास में निवेश किया और फिलीस्तीन को इस्राइल के सामने मरने को छोड़ दिया। फिलस्तीन के लोग तबाह हो गए। यमन और सोमालिया नष्ट होने के लिए तड़प रहे हैं।
अब चीन ने नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में यही किया है। नेपाल में उसने माओवादियों में निवेश किया और एक हिंसक दौर के बाद भारत विरोधियों को सत्ता में बिठा दिया।
मालदीव में इस्लामिस्टों में निवेश किया। मुइज्जू एंड कंपनी मालदीव को तेजी से तबाही की तरफ ले जा रही है।
आज ये देश कर्ज में डूबे हैं और जनता कराह रही है। म्यांमार को तबाह कर रखा है। गृहयुद्ध की कगार पर है।
चीन की तरफ से पैड इन लीडरों की मूर्खताओं की कीमत निरपराध लोग चुका रहे हैं।
चीन ने निवेश तो भारतीय राजनीति में भी किया होगा, लेकिन यहां जनता बड़ी होशियार है। यहां जो भी चीन के साथ जाएगा, उसकी राजनीति खत्म हो जाएगी।
हम भी चीन की तरह निर्मम खेल खेल सकते हैं, किंतु सवाल यह है कि आपके आज आर्थिक लक्ष्य क्या हैं और किसी खेल की कीमत आप कितनी अदा करना चाहते हैं। हमें संयम रखना चाहिए। अफ्रीका और दूसरे देशों में चीन का निवेश डूबने वाला है। पाकिस्तान के लिए भी चीन का कर्ज चुकाना बहुत मुश्किल होगा।
बेशक मालदीव की मौजूदा लीडरशिप को बख्शना नहीं चाहिए। हमारे विरुद्ध जाने वाले के साथ युद्ध के अलावा जो किया जाना जरूरी हो, वह किया जाना चाहिए।