ग्वालियर ।    इस अंचल की तो तासीर ही बगावत की है तो चुनाव में कैसे न दिखाई दे। ग्वालियर-चंबल में इस वक्त दोनों पार्टियों में अभूतपूर्व विरोध दिखाई दे रहा है। अंदाजा इससे लगा सकते हैं अंचल की राजनीति जिस महल के इशारों पर अंगड़ाई लेती है, उसे भी कार्यकर्ताओं ने घेर लिया और 'महल वालों' को बचकर जाना पड़ा। इस बार इतनी बगावत क्यों के दोनों दल में अलग-अलग कारण हैं। कांग्रेस में मुख्य कारण सत्ता में वापसी की सुगबुगाहट या छटपटाहट के बीच खुद की भागीदारी सुनिश्चित करना है तो भाजपा में खेमेबाजी। ग्वालियर-चंबल अंचल के कुल आठ जिलों में कुल 34 सीटें आती हैं, जिनमें भाजपा की ओर से सिर्फ गुना को छोड़कर बाकी सभी जगह दोनों प्रमुख दलों ने प्रत्याशी उतार दिए हैं। जो 'योग्य' होते हुए भी दोनों तरफ की किसी भी सूची में जगह नहीं बना पाए, उनका सब्र जवाब दे गया और उन्होंने बिना देर किए हाथी की सवारी कर ली। अंचल में ऐसी कुल छह सीटें हैं, जहां भाजपा-कांग्रेस के नेता, विधायक या पूर्व विधायक ने बसपा से लड़ने का एलान कर मुकाबला त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जिन चुनिंदा सीटों पर अपनों का बिल्कुल विरोध नहीं, उन्होंने नवमी के शुभ मुहूर्त में पर्चा दाखिल कर प्रचार का देवी पूजन कर दिया है, लेकिन जहां विरोध की आग भड़की हुई है, वहां पूरा प्रयास रूठों को मनाने का चल रहा है।

ग्वालियर संभाग : महल घेरा, मान भी गए

ग्वालियर संभाग में उत्तरी मध्य प्रदेश का वह हिस्सा आता है, जिसकी सीमा राजनीति के 'मदीना' कहे जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश से लगती है। संभाग में ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना और अशोकनगर जिले आते हैं। ग्वालियर, शिवपुरी और गुना में उठापटक बनी हुई है। यहां की सीटों पर सिंधिया घराने का सीधा दखल रहता है। हालिया विरोध ग्वालियर पूर्व सीट से टिकट का सपना संजोए मुन्नालाल गोयल की ओर से देखने को मिला। मुन्ना के समर्थकों ने महल में जाकर खूब हंगामा किया।

मुन्ना 2020 में सिंधिया के साथ आए थे, लेकिन उपचुनाव हार गए थे। फिलहाल मुन्ना मान गए हैं और किसी भी कीमत पर चुनाव लड़ने की बात से यूटर्न ले लिया है। शिवपुरी के कोलारस से भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी सहित कई सिंधिया समर्थकों को कांग्रेस ने घर वापसी करवाकर राजनीति में हलचल मचा दी थी। यह बात और है कि कांग्रेस ने वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट न देकर उनके राजनीतिक करियर को हाशिए पर धकेल दिया है। रघुवंशी को लेकर कमल नाथ ने दिग्विजय के कपड़े फाड़ने तक की बात समर्थकों को कह दी थी, हालांकि हुआ कुछ नहीं। भाजपा में शिवपुरी से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव लड़ने से इन्कार के बाद 'महल' ने अपने पसंदीदा देवेंद्र कुमार जैन को उतारा है। उनका मुकाबला पिछोर सीट पर छह बार से जीत रहे केपी सिंह उर्फ कक्काजू से होगा। कांग्रेस के रणनीतिकार दिग्विजय सिंह कक्काजू के जीतने की कला को शिवपुरी में इस्तेमाल कर सिंधिया से बदला लेना चाहते हैं। वैसे जैन के पास वैश्य वोटबैंक और महल समर्थकों का साथ होने से कक्काजू की नाबाद राजनीतिक पारी दांव पर लगी नजर आ रही है। दतिया में कांग्रेस की ओर स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है। भारी विरोध के बाद कांग्रेस को यहां अवधेश नायक का टिकट बदलकर राजेंद्र भारती को देना पड़ा है जो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं। गुना की चाचौड़ा सीट पर भाजपा ने दो माह पहले ही एक आइआरएस अधिकारी की पत्नी को टिकट दे दिया था, तभी से यहां तनातनी मची हुई है। भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा अब केजरीवाल की आप पार्टी से 'झाड़ू' लेकर मैदान में हैं।

चंबल संभाग : 'माया' का सहारा

भिंड, मुरैना और श्योपुर जैसे ठेठ बीहड़ों वाले जिलों में ग्वालियर संभाग जैसा लचीलापन नहीं है। यहां बात जमी तो जमी, नहीं तो फैसला आन द स्पाट। इसलिए, यहां दोनों ही दल के नाराजों ने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की 'माया' का सहारा लेकर चुनावी रण में उतरने के लिए हाथी यानी बहुजन समाज पार्टी को सिद्ध कर लिया है। कांग्रेस में सुमावली सीट पर मौजूदा कांग्रेस विधायक अजब सिंह कुश्वाह ने हाथी की सूंड के सहारे पंजे की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

वहीं, भिंड से बसपा के टिकट पर जीतकर कुछ समय पहले ही भाजपाई हुए संजीव कुशवाह ने भाजपा की वादाखिलाफी के बाद चुनाव लड़ने का एलान किया है। उनका कोई दल होगा या निर्दलीय लड़ेंगे, तय नहीं है, लेकिन नुकसान दोनों पार्टियों का होगा। मुरैना सीट पर भाजपा के पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह ने बेटे राकेश के जरिए और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह की सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक रसाल सिंह ने बसपा की सदस्यता लेकर ताल ठोक दी है।

दिमनी पर सबकी नजर

मुरैना जिले की दिमनी सीट पर देशभर की नजरें हैं, क्योंकि यहां मोदी कैबिनेट के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। तोमर भावी मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। इस सीट पर जातीय समीकरण हावी रहता है। क्षत्रिय वोट भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों में बंटता दिख रहा है, क्योंकि तीनों के प्रत्याशी ठाकुर हैं। बसपा के प्रत्याशी ब्राह्मण हैं, जिन्होंने भाजपा को 2013 के चुनाव में तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। 2008 के बाद भाजपा यहां जीती ही नहीं और तोमर भी प्रदेश की राजनीति से तभी से दूर हैं।