न अध्यक्ष, न सदस्य कैसे मिलेगा महिलाओं को न्याय
मप्र राज्य महिला आयोग में 24 हजार शिकायतें पेंडिंग
भोपाल । मप्र सरकार की पहली प्राथमिकता महिलाओं की रक्षा है। लेकिन विडंबना यह है कि महिलाओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए गठित मप्र राज्य महिला आयोग में पिछले 5 साल से ने अध्यक्ष और न सदस्य। हालात ये हैं कि शिकायतों का आयोग में अंबार लग गया है। आलम यह है कि आयोग में 24 हजार से अधिक शिकायतें पेंडिंग हैं। ऐसे में महिलाओं को न्याय कैसे मिलेगा।
जानकारों का कहना है कि अध्यक्ष और सदस्य विहीन होने के कारण मप्र राज्य महिला आयोग निष्क्रिय पड़ा है। ऐसे में महिलाओं को न्याय के लिए इधर से उधर भटकना पड़ रहा है। इंदौर की युवती सीमा सिंह परिवर्तित नाम की एक फोटो किसी शरारती ने इंस्टाग्राम पर अपलोड कर कुछ आपत्तिजनक बातें लिख दी। इसकी शिकायत युवती ने चार माह पहले थाने में की, मामले का निराकरण नहीं हुआ तो मप्र महिला आयोग में आवेदन दिया, लेकिन यहां न सुनवाई हुई और न ही इंस्टाग्राम से पोस्ट हटवाई गई। यही हाल आगर मालवा की बलात्कार से पीडि़त महिला के मामले का है।
शिकायतों की फाइलें धूल खा रही
दरअसल साल 2019 से आयोग में न अध्यक्ष है और न ही सदस्य। पांच वर्ष से शिकायतों की फाइलें धूल खा रही हैं। इससे 24 हजार पीडि़त महिलाएं पांच वर्ष से न्याय की बाट जोह रही हैं। आयोग अपने स्तर से पुलिस और मैदानी अफसरों से शिकायत पर प्रतिवेदन तो बुला लेता है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही। आज हालत यह है कि महिला आयोग में न अध्यक्ष हैं और न ही सदस्य। और तो और महिलाओं को न्याय देने से जुड़े हुए 24000 मामले भी पेंडिंग हैं। चाहे वो आगर मालवा की बलात्कार पीडि़ता हो, चाहे इंदौर की साइबर क्राइम पीडि़त युवती, किसी को यदि पुलिस न्याय नहीं दिला पा रही है, तभी तो उन्होंने महिला आयोग का रुख किया! लेकिन, अब वहां भी सुनने वाला कोई नहीं है! आयोग के नियमानुसार किसी भी शिकायत पर 15 दिन के अंदर कार्रवाई करनी होती है।
हर साल 3500 से अधिक शिकायत
आंकड़ों के अनुसार 3500 महिलाएं प्रतिवर्ष महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवाने पहुंचती हैं।आयोग में पिछले पांच वर्ष से अध्यक्ष और सदस्यों की सरकार ने नियुक्ति नहीं की है। कांग्रेस सरकार ने 16 मार्च 2020 को अधिसूचना जारी कर अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की थी। कुछ दिन बाद ही कांग्रेस सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा सरकार ने जिस अधिसूचना से अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कांग्रेस सरकार ने की थी, उसको ही निरस्त करने कर इन्हें हटा दिया था। मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया, फैसला नहीं हो पाया है। 2020 में नियुक्ति होने से महिलाओं को यह उम्मीद जगी है कि नए अध्यक्ष और सदस्यों की सुनवाई कर महिलाओं की शिकायतों का तत्काल निराकरण होगा पर ऐसा नहीं हो पाया। बताया जाता है कि पति, परिवार, सहकर्मी, समाज सहित अन्य तमाम प्रताडऩा से पीडि़त प्रति वर्ष साढ़े तीन हजार से अधिक महिलाएं महिला आयोग का दरवाजा खटखटा कर न्याय गुहार लगाती हैं। 2023-24 में सबसे ज्यादा महिला प्रताडऩा के मामले सामने आए हैं। शाजापुर की लक्ष्मी जाट (परिवर्तित नाम )का कहना है कि मैंने महिला महिला आयोग में पति से भरण पोषण के दिलाने के संबंध में कई महीने पहले शिकायत की थी। इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई और न ही मुझे न्याय मिला है। आयोग ने मेरी शिकायत के संबंध में सुनवाई भी नहीं की। वहीं भिंड की नजराना बानो (परिवर्तित नाम) का कहना है कि ससुराल वाले दहेज की मांग को लेकर प्रताडि़त कर रहे हैं। इसकी शिकायत महिला आयोग में की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस संदर्भ में मंत्री महिला एवं बाल विकास विभाग निर्मला भूरिया का कहना है किभाजपा सरकार महिलाओं के हित में पूरी तरह से समर्पित है। चुनाव आचार संहिता हटने के बाद महिला आयोग में अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी।