परिणाम से पहले होगा आंकड़ों का आकलन


भोपाल । मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत की संभावनाओं का आकलन करने के लिए भाजपा ने विधायकों से विधानसभावार रिपोर्ट मांगी है। यानी विधायकों को यह रिपोर्ट देनी है कि लोकसभा सीट पर उनके विधानसभा क्षेत्र में कितना मतदान हुआ है और भाजपा की क्या स्थिति बन रही है।  जिन क्षेत्रों में वोट प्रतिशत कम हुआ है, उसकी वजह भी विधायकों से पूछी गई है। भाजपा सूत्रों का कहना है की 4 जून को मतगणना से पहले पार्टी इस बात का आकलन करना चाहती है कि किसी सीट पर क्या स्थिति बन रही है।
गौरतलब है की इस बार प्रदेश की सभी 29 सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने विधानसभा चुनाव के साथ ही रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। 2019 की अपेक्षा इस बार 10 प्रतिशत अधिक मतदान बढ़ाने के लिए हर बूथ पर 370 अधिक वोट डलवाने का टारगेट भी बनाया था। लेकिन पिछले लोकसभा और बीते विधानसभा चुनावों की तुलना में कई क्षेत्रों में कम मतदान हुआ है। इससे भाजपा को नुकसान होने की बात कही जा रही है। इससे पार्टी संगठन सचेत हो गया है और दिल्ली के फरमान पर प्रदेश संगठन ने अपने विधायकों से चुनावी रिपोर्ट मांगी है। जानकारी के अनुसार भाजपा ने विधायकों से जो रिपोर्ट मांगी है उसमें बताना होगा कि उनके क्षेत्र में वोट प्रतिशत कैसा रहा?  बूथ बार वोट प्रतिशत की स्थिति कैसी रही।  किन-किन बूथ पर पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तुलना में 370 अतिरिक्त वोट डाले। जहां मतदान प्रतिशत कम हुआ है, उसका असर पार्टी के अनुकूल परिणाम पर कितना पड़ेगा। वोट प्रतिशत कम होने की मूल वजह क्या है। विधायक ने मतदान के पहले वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए थे। पार्टी को कौन से नेता, कार्यकर्ताओं ने अथक मेहनत की है और कितने नेता औपचारिकता करते रहे है। विधायकों ने प्रचार के दौरान गांवों में कितनी रातें बिताई।

अधिकांश की रिपोर्ट तैयार
जानकारों की मानें तो अधिकांश विधायकों ने अपनी रिपोर्ट प्रदेश संगठन को भेज दी है, लेकिन अभी भी एक दर्जन से ज्यादा विधायक रिपोर्ट नहीं भेज पाए है। इसके पीछे उन्होंने दूसरे प्रांतों में लोकसभा चुनाव में उनकी ड्यूटी लगी होने का कारण बताया है और कहा है कि जैसे ही वे जिम्मेदारी पूरी कर अपने क्षेत्र लौटेंगे तो अपनी रिपोर्ट पार्टी को सौंप देंगे। पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो मतगणना से पहले प्रदेश संगठन भोपाल में विधायकों की रिपोर्ट का आंकलन करेगा और फिर अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेजेगा। इसके लिए पांचवे चरण के लिए 25 मई को मतदान होने के बाद किसी भी दिन भोपाल में बैठक बुलाई जा सकती है, जिसमें लोकसभा चुनाव के मध्यप्रदेश प्रभारी डॉ. महेन्द्र सिंह, सह प्रभारी सतीश उपाध्याय सहित दूसरे बड़े नेता मौजूद रहेंगे। सूत्रों के अनुसार विधायक की स्व रिपोर्ट और पार्टी द्वारा तैयार कसई गई रिपोर्ट का मिलान किया जाएगा। इसके आधार पर पार्टी के विधायक का अकिलन होगा और उसी आधार पर उनके राजनैतिक भविष्य का फैसला किया जाडग़ा। विशेषकर मंत्रियों के बारे में रिपोर्ट के आधार पर आंकलन करना अहम होगा।

माह के अंत में हो सकती है बैठक


गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा दूसरे प्रातों में लोकसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त हैं। प्रदेशाध्यक्ष शर्मा झारखण्ड में 30 मई तक व्यस्त रहेंगे। जहां उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है, वहां पर अंतिम चरण में 1 जून को मतदान होना है। इसी तरह सीएम डॉ. यादव की लगातार दूसरे प्रांतों में चुनावी व्यस्यता बनी हुई है। ऐसे में मना जा रहा है कि 30 मई की शाम को या फिर उसके बाद कभी भी भोपाल में पार्टी की बैठक हो सकती है। सूत्रों की मानें तो भाजपा के 80 प्रतिशत विधायकों को दूसरे प्रांतों में चुनावी जिम्मेदारी सौंपी गई। कई विधायकों को जातिगत समीकरण के हिसाब से तो कई को उनके चुनावी अनुभव के कारण अलग-अलग प्रांतों में भेजा गया है। दिल्ली में एक लोकसभा सीट पर मध्यप्रदेश से 8 से ज्यादा विधायक लगाए गए हैं, तो इसी प्रकार उड़ीसा की पुरी, भुवनेश्वर सहित वहां की दूसरी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर विधायकों को तैनात किया गया है। इनमें से कुछ विधायक प्रदेश की मोहन यादव सरकार में मंत्री भी हैं। जिन्हें अलग-अलग प्रांतों के लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई ।

मंत्रियों की सीटों पर कम वोटिंग


मप्र की 29 लोकसभा सीटों के लिए हुए मतदान में जिन मंत्रियों और विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में कम वोट मिलेंगे, उन पर पार्टी संगठन कार्रवाई कर सकता है। पार्टी का स्पष्ट मत है मात्र छह महीने पहले चुने गए विधायक और मंत्री लक्ष्य के अनुरूप मतदान में वृद्धि भी नहीं करवा पाए और वोटों में कमी आई तो इसकी वजह उनकी लोकप्रियता या संवाद में कमी ही है। पार्टी नेताओं का मानना है कि प्रत्याशी चयन में कई जगह संगठन को छोड़ विधायकों की पसंद का भी ध्यान रखा गया है, ऐसे में उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। हार-जीत के अंतर में उनकी भूमिका नजर आनी चाहिए। इस तरह लोकसभा चुनाव के परिणाम विधायकों के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होंगे। मंत्रियों का पद छिने जाने की आशंका है तो विधायकों को कड़ी चेतावनी मिल सकती है। इस लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर 66.87 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया है। प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों पर मतदान के अंतिम आंकड़े आ गए हैं। वर्ष 2019 की तुलना में इस बार 4.25 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। वहीं, 30 मंत्रियों की सीटों पर विधानसभा चुनाव की तुलना में वोटिंग 22 प्रतिशत तक कम हुई है। इसमें 13 मंत्रियों की सीट पर वोटिंग का अंतर 10 प्रतिशत से अधिक है। मंत्रियों की सीटों पर सबसे ज्यादा अंतर दमोह के जबेरा सीट से विधायक और मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी के यहां रहा। यहां पर विधानसभा चुनाव में मतदान 80.63प्रतिशत हुआ था, लेकिन लोकसभा चुनाव में यह सिर्फ 58.39प्रतिशत रहा। यानी यहां पर वोटिंग में 22 प्रतिशत का अंतर रहा। वहीं, सबसे कम अंतर वन मंत्री नागर सिंह चौहान की सीट आलीराजपुर में रहा। यहां पर सिर्फ 1.4प्रतिशत कम मतदान हुआ है।  2024 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 66.87 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2019 में मतदान प्रतिशत 71.12प्रतिशत रहा था। प्रदेश में पहले और दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत घटने के बाद चुनाव आयोग के साथ ही राजनीतिक दलों ने अपने कार्यकर्ताओं को सयि किया था।