ज्योतिष शास्त्रों में होलिका दहन को काफी खास स्थान दिया गया है. होलिका दहन की रात को दीपावली और नवरात्रि की तरह ही खास माना गया है. कहा जाता है कि दीपावली, नवरात्रि और महाशिवरात्रि के रात में दैवीय शक्तियां जागृत होती है. ठीक इसी प्रकार होलिका दहन की रात भी दैवीय शक्तियां जागृत रहती है. इसलिए होलिका दहन को काफी विशेष माना जाता है और इस दिन लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय करते हैं. प्राचीन काल से यह परंपरा चली जा रही है कि इस दिन होलिका दहन की सामाग्री को कच्चे सूते से लपेटकर पहले उसकी पूजा की जाती है. उसके बाद ही होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के बाद लोग उसकी सात परिक्रमा भी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से रोग और दुख का नाश होता है तथा नकारात्मक शक्तियां मिट जाती है.

यहां खास तरह से जलाई जाती है होलिका
क्या आप जानते हैं कि बिहार के कई इलाकों में होलिका दहन को काफी खास तरीके से मनाया जाता है. दरअसल, होलिका दहन के बाद बिहार में नई फसलों की आहुति देने की परंपरा है. जिस प्रकार हवन के दौरान लोग धूप इत्यादि अग्नि में डालकर हवन करते हैं, ठीक उसी प्रकार होलिका की अग्नि में भी लोग नई फसलों की बालियों की आहुति देते हैं. होलिका जलाने के बाद लोग उसकी अग्नि में नई फसल जैसे गेहूं, जौ, चना इत्यादि की सात बालियों की आहुति देते हैं. फिर उस जली हुई बालियों को प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते हैं. इसके पीछे का कारण काफी पौराणिक भी है और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काफी महत्वपूर्ण भी है.

आखिर गेहूं की बालियों की आहुति क्यों देते हैं लोग
ज्योतिषाचार्य पंडित मनोहर आचार्य बताते हैं कि प्राचीन परंपरा रही है कि होलिका दहन में लोग सात फेरा लगाने के बाद गेहूं या जौ की सात बालियों की आहुति देते हैं. उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि नई फसल को सबसे पहले भगवान या पूर्वजों को अर्पित किया जाता है और ऐसा करने से परिवार में पूरे साल सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. यही वजह है कि होलिका दहन की अग्नि में भी गेहूं या जौ की बालियों की आहुति दी जाती है. उन्होंने बताया कि सात गेहूं की बाली को जलाने के पीछे का उद्देश्य यही है कि 7 शुभ अंक है और यही कारण है कि सप्ताह में 7 दिन और विवाह में सात फेरे होते हैं. इसलिए होलिका की अग्नि के 7 फेरे लगाए जाते हैं तथा उसमें 7 गेहूं के बालियों को ही अर्पण किया जाता है.