जय प्रकाश पाराशर 

भोपाल मध्य प्रदेश के दस साल तक मुख्यमंत्री और सांसद रहे दिग्विजय सिंह 77 साल की उम्र में अपनी परंपरागत राजगढ़ सीट से चुनाव मैदान में हैं। 2019 में वह भोपाल सीट से बड़े अंतर से प्रज्ञा ठाकुर से हार चुके हैं। सियासी गलियारों में चर्चा यही है कि वह चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान चाहता था कि वह चुनाव लड़ें। अब उनका मुकाबला दो बार सांसद रहे भाजपा के रोडमल नागर से है। रोडमल नागर से लोग बड़ी संख्या में खुश दिखाई नहीं देते, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर उनके सामने आ जाती है। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों की बड़ी तादाद केवल नरेंद्र मोदी की बात करती है। 
दिग्विजय के लिए यह चुनावी जंग आसान बिलकुल भी नहीं है। उन्हें पता है कि यह नरेंद्र मोदी का दौर है। फिर भी दिग्विजय अपने अनुभवों का इस्तेमाल वह बड़ी खूबी से कर रहे हैं। भोपाल की हार से उन्होंने कई सबक सीखे हैं। इसलिए जब वे राजगढ़ से मैदान में उतरे हैं, तो उन्होंने सारी रणनीतियां बदल दी हैं। इस बार उनके दाव-पेंच भावनात्मक और धार्मिक हो गए हैं। जो इलाके उनके परंपरागत गढ़ रहे हैं, उन पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। 

1. मोदी से नहीं, नागर से मुकाबलाः 

दिग्विजय के पुत्र जयवर्धन सिंह राघोगढ़ से विधायक हैं और वह अपने भाषणों में कह रहे हैं कि यह मुकाबला दिग्विजय सिंह और रोडमल नागर का है। दिग्विजय और मोदी का नहीं है। दिग्विजय कैंप को पता है कि रोडमल नागर के प्रति जो भी एंटी-इनकंबैंसी है, उसका फायदा उठाना है तो मुकाबला नागर से ही करो। 

2. बाहर के समर्थकों को रोका 

भोपाल में दिग्विजय के बाहर से आने वाले समर्थकों की बयानबाजियां काफी भारी पड़ी थीं। जैसे जावेद अख्तर ने हिजाब और हिंदू स्त्रियों के घूंघट को एक ही बात बताया था। उसके बाद काफी विवाद हुआ। दिग्विजय ने पूरी लड़ाई को दिग्विजय बनाम रोडमल बनाने का प्रयास किया है और बाहर के समर्थकों व स्टार प्रचारकों को आने से इनकार कर दिया है। 

3. जातियों की री-इंजीनियरिंग

दिग्विजय ने इस चुनाव में अपने परंपरागत जातीय समीकरणों को पुनर्जीवित किया है। वह राजपूत, सोंधिया, दांगी और मीणा समाज के नेताओं को झोंक रहे हैं। जैसे सुसनेर के मौजूदा विधायक सोंधिया हैं, उन्हें सुसनेर में जिम्मेदारी सौंपी है। ब्यावरा में पूर्व सरपंच नारायण सिंह अमलाबी सोंधिया जाति की पंचायतों में जाकर लोगों के पैरों में पगड़ी रखकर कह रहे हैं कि उनकी इज्जत बचा लें। रामचंद्र दांगी और पुरुषोत्तम दांगी को दांगियों को जुटाने में लगाया गया है। चांचोड़ा में मीणा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। खिलचीपुर को प्रियव्रत सिंह संभाल रहे हैं। हालांकि भाजपा के पास भी इन सभी जाति समाजों के नेता हैं। 

4. चार विधानसभाओं पर ज्यादा फोकस

दिग्विजय सिंह पहले भी लोकसभा चुनाव के दौरान तीन विधानसभाओं में ज्यादा वोट मिलने से जीतते रहे हैं। इस बार भी इसी रणनीति को फिर से अपनाया जा रहा है। राघोगढ़, चांचौड़ा, सुसनेर और खिलचीपुर उनकी रणनीति का आधार हैं। अगर यहां अधिक बढ़त लेने में कामयाब हो जाते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह सीट जीत सकते हैं। हालांकि चांचौडा से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह विधानसभा चुनाव हारे हैं और जयवर्धनसिंह भी राघोगढ़ से बमुश्किल चुनाव जीते थे। खिलचीपुर से प्रियव्रत सिंह भी चुनाव हार चुके हैं। इसलिए रणनीति कितनी कारगर होगी, कहना मुश्किल है। 
5. अंतिम चुनाव की अपील दिग्विजय सिंह के समर्थक मतदाताओं से भावुक अपील भी कर रहे हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है और उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। खासकर राघोगढ़ में यह भावुक अपील लोगों पर असर करती दिखाई भी दे रही है। लेकिन दूसरी सीटों पर क्या असर करेगी, इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है।
6. मंदिरों की परिक्रमा दिग्विजय सिंह ने शुरू से ही अपने राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह की तरह  हार्डकोर सेकुलरिस्ट की छवि रखी है और हिंदुत्ववादियों पर तीखे हमले करते रहे हैं। बल्कि ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहना, बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकियों का पक्ष लेना और जाकिर नाईक के साथ मंच साझा करने को लेकर काफी विवाद होते रहे हैं। लेकिन इस बार दिग्विजय सिंह बड़ी सतर्कता से राजगढ़ सीट के प्रमुख मंदिरों की परिक्रमा कर रहे हैं। वह जहां भी जा रहे हैं, उस इलाके के प्रमुख मंदिर पर जाना नहीं भूलते हैं। हिंदू धर्म के कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करके वह संकेत देना चाहते हैं कि राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में कांग्रेस के नेताओं के नहीं जाने का मतलब यह नहीं है कि वह हिंदू धर्म के विरुद्ध हैं। 

दिग्विजय सिंह की रणनीतियों ने राजगढ़ से भाजपा के लिए चुनाव को मुश्किल तो बना दिया है, लेकिन भाजपा की तीन शक्तियां हैंः नरेंद्र मोदी, हिंदुत्व और भाजपा कार्यकर्ताओं का चुनाव प्रबंधन। लोगों का ख्याल है कि भाजपा के जो भी कार्यकर्ता उम्मीदवार से नाराज हैं, वे अंत में वोट भाजपा को ही देंगे, क्योंकि यह वोट नरेंद्र मोदी के लिए है।