जय प्रकाश पाराशर
 
छत्तीसगढ़ चुनाव के पहले चरण में 20 विधानसभा सीटों पर मंगलवार को मतदान हो रहा है, उनमें से 19 पर अभी कांग्रेस के विधायक हैं. मगर हालात बता रहे हैं कि अब 19 नहीं रहेंगे. कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला इन सीटों पर बराबरी का है. इसका नतीजा यह हो सकता है कि दूसरे चरण में भी भाजपा को सेंटीमेंट का फायदा होगा, हालांकि कर्जमाफी की घोषणा के कारण दूसरे चरण में कांग्रेस ज्यादा प्रभावशाली नजर आती है, लेकिन कहानी का दूसरा पहलू यह है कि दो कमजोर पार्टियां कांग्रेस की संभावनाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.
 
पहले चरण में बस्तर की पूरी 12 सीटें कांग्रेस के पास थीं. अब भाजपा और कांग्रेस को अगर बराबर नहीं भी माना जाए तो बस्तर में कांग्रेस 7-5 से आगे हो सकती है. यानी पहले चरण की 20 में से 10 सीटें भाजपा को मिल सकती हैं. सर्व आदिवासी समाज नाम की पार्टी कई सीटों पर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने वाली है. वहीं जोगी कांग्रेस ने भी प्रदेश में करीब 86 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं. जोगी कांग्रेस को भले ही एक-दो से ज्यादा सीटें नहीं मिलें, लेकिन वह करीब 10-12 सीटों पर कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकती है. बस्तर और सरगुजा के आदिवासी इलाकों में कनवर्जन (धर्मांतरण) एक अहम मुद्दा है, लेकिन असली फैक्टर सर्व आदिवासी समाज है.
 
कांग्रेस के पक्ष में क्या है?
  1. कर्ज माफी घोषणाः कांग्रेस कर्ज माफी को काफी प्रचारित कर रही है. कर्ज माफी वह पिछली टर्म में भी कर चुकी है. कर्ज माफी वैसे भी चालू वर्ष के लिए होती है. दूसरी तरफ डिफाल्टरों को उसका लाभ कभी नहीं मिलता. इसलिए यदि भूपेश बघेल सत्ता में वापस आ भी जाते हैं, तो उन्हें कर्ज माफी पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा. भाजपा का सवाल है कि यह कर्ज पिछले पांच साल में माफ क्यों नहीं किया? दूसरा सवाल यह है कि अगर आपकी नीतियां इतनी किसान हितैषी थीं, तो किसान कर्जदार कैसे हो गए?
  2. जाति की इंजीनियरिंगः कई लोगों का ख्याल है कि कांग्रेस ने बेहतर कास्ट इंजीनियरिंग (जाति के समीकरण) की है. कांग्रेस ने साहू समाज को उनके जनसंख्या बहुल हर जिले में एक टिकट को दिया है. इसी तरह कुर्मी और यादव समाज के लिए किया है. जबकि भाजपा ने लाइन से एक ही इलाके में साहुओं को टिकट दे दिए हैं. माली मरार को एक भी टिकट नहीं दिया, जबकि उनकी जनसंख्या 4 प्रतिशत के करीब है और वे कई सीटों पर अहम वोटर हैं. कांग्रेस के कद्दावर मंत्री मोहम्मद अकबर कवर्धा में फंसे हैं, लेकिन कांग्रेस की रणनीति यह है कि विरोधी ब्राह्मण उम्मीदवार के खिलाफ साहुओं को लामबंद किया जाए.
  3. धान की खरीदी 3000 रुपए पर 20 टनः कांग्रेस ने पिछले टर्म में अपने उस वादे को निभाया है, जो धान खरीदी लिए किया था. हालांकि भाजपा ने 3100 रुपए की दर पर 21 टन का वादा किया है, लेकिन कांग्रेस वादा निभाने का ट्रैक रिकार्ड पेश करेगी और साथ ही मतदाता को याद दिलाएगी कि भाजपा ने अंतिम दो साल के बोनस का वादा पूरा नहीं किया था.
मोदी और महादेवः
 
पीएम नरेंद्र मोदी की सभाओं ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया है. दुर्ग जिले की एक सभा में नरेंद्र मोदी ने खुद को साहू भी बताया है. मोदी के मंच पर ही दुर्ग जिले की कांग्रेस की जिला अध्यक्ष रही तुसली साहू भी भाजपा के साथ आ गई हैं. लेकिन यह सवाल बना रहेगा कि क्या साहू समाज नरेंद्र मोदी के इशारे को समझने वाला है या नहीं. यदि मोदी साहू मतदाता को भाजपा के पक्ष में लाने में कामयाब हो जाते हैं, तो कांग्रेस का टेंट उखड़ जाए तो कोई हैरानी नहीं.
दूसरी तरफ महादेव एप के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जो आरोप कांग्रेस नेताओं पर लगाए हैं, उसका भी असर देखने को मिल सकता है. दरअसल कांग्रेस के लिए महादेव एप जी का जंजाल बन गया है. एक व्यंग्य भरा नारा भी चल पड़ा है- हर हर महादेव, घर घर महादेव. जिसका मतलब यह समझाया जा रहा है कि महादेव एप के धन से वोट खरीदे जाएंगे.
उसके बावजूद कई विश्लेषकों का ख्याल है कि अब भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आगे है, अलबत्ता कई बड़ी मूर्तियां टूट सकती हैं. कांग्रेस के नेता भी 50 से ज्यादा सीटें हासिल कर पाते हैं, तो उसे बहुत बेहतर संख्या मानेंगे. छत्तीसगढ़ की राजनीति को बारीकी से विश्लेषित करने वाले एक मित्र की थ्योरी तो यह है कि तीन टर्म से ज्यादा वाले जितने विधायक चुनाव में खड़े हुए हैं, वे सब हारेंगे. यह कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए डरावनी खबर है.
 
कांग्रेस की छवि की सबसे बड़ी समस्या पांच साल सत्तासीन होने के दौरान शराब, रेत और माइनिंग के क्षेत्र में मिली बदनामी है. सरकार से जुड़े कई लोगोंं को जेल जाना पड़ा है.
 
भाजपा के अवसर कहां हैं
  1. यह सच है कि भाजपा की स्थिति में आश्चर्यजनक रूप से सुधार हुआ है, लेकिन टिकटों के बंटवारे में उसने कई गलतियां भी की हैं. जैसे दुर्ग, बिलासपुर और महासमुंद जिलों में एक भी साहू को टिकट नहीं दिया. पंडरिया-बालोद इलाके में माली मरार समाज के एक भी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया. अब उसके अवसर इस बात पर काफी निर्भर करेंगे कि जोगी कांग्रेस और सर्व आदिवासी समाज कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचा पाते हैं.
  2. ओबीसी की जनगणना वाले मामले में भाजपा का यह रुख ओबीसी को समझ नहीं आ रहा है कि समाज विभाजित हो जाएगा. उन्हें लगता है कि ऐसा कहकर भाजपा के नेता ओबीसी के खिलाफ स्टैंड ले रहे हैं. ओबीसी को लगता है कि भाजपा का रुख यह होना चाहिए कि ओबीसी समाज को पर्याप्त भागीदारी दी जाए, क्योंकि यह उनका हक है और भाजपा ऐसा करके बड़ी खुश होगी, क्योंकि ओबीसी उसके समर्थन में रहे हैं. 
  3. भाजपा को किसान समर्थक होने के साथ-साथ दिखना भी जरूरी है. जैसे वह एक ऐसी योजना की घोषणा कर सकती थी, जिसमें धान के समर्थन मूल्य के ऊपर 1000 रुपए प्रति क्विंटल राहत  राशि दी जाती, यह योजना उसे कांग्रेस से अलग दिखने में मदद कर सकती थी, भले ही यह एक खर्चीला और लोकप्रियतावादी कदम होता.
अंततः जो लोग भाजपा को खारिज कर रहे हैं और मानकर चल रहे हैं कि कांग्रेस 50-55 सीटों के साथ सरकार बना लेगी, शायद उन्हें तीसरी शक्तियों की मौजूदगी का कोई अंदाज नहीं है. कई लोग हैरान होने वाले हैं, जैसे पहले होते रहे हैं.
 
 
न्यूज़ सोर्स : IndiaStarNews