नई दिल्ली । कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने संसदीय समितियों के अध्यक्ष चुनने को लेकर लोकसभा में सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि विपक्ष के अधिकारों को छीनाकर स्थापित परंपराओं को खत्म करने की कोशिश हो रही है। लोकसभा की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद दोपहर 12 बजे शुरू होने पर सदन में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने इस विषय को उठाया। चौधरी ने कहा कि संसद में विपक्ष को कुछ सुविधा और कुछ अधिकार मिले होते हैं लेकिन अब इन परंपराओं को खत्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ‘‘विपक्ष से संसद की विभिन्न स्थायी समितियों की अध्यक्षता छीनी गई है।’’
कांग्रेस नेता चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से अपील कर कहा इस मामले में आप बहुत कुछ कर सकते हैं लेकिन परंपराओं को खत्म किया जा रहा है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता ने कहा कि परंपरा और चलन के अनुरूप जो अधिकार विपक्ष को मिले हैं उन्हें नहीं छीना जाना चाहिए। इस पर लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने चौधरी से कहा ‘‘आप वरिष्ठ सांसद है और सदन में कांग्रेस के नेता हैं...क्या अध्यक्ष पर आक्षेप किया जाता है और ऐसा करके क्या आपने परंपरा का उल्लंघन नहीं किया है? बिरला ने कहा कि सदन की समितियों के बारे में अध्यक्ष को अधिकार मिले हैं और आपने (चौधरी) अध्यक्ष के अधिकारों को चुनौती दी है।
वहीं टीएमसी नेता बंदोपाध्याय ने कहा कि वह न तो अध्यक्ष के आसन पर कोई आक्षेप कर रहे हैं और न आप (बिरला) पर कोई आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि संसदीय कार्य राज्य मंत्री की ओर से उनके पास फोन कर बताया गया कि तृणमूल कांग्रेस को किसी संसदीय समिति की अध्यक्षता हमें नहीं मिलेगी। टीएमसी सांसद ने कहा कि संसद के दोनों सदनों को मिलाकर तृणमूल कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन हमारे दल के सदस्य को किसी संसदीय समिति का अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा हम इसके लिए भीख नहीं मांगने वाले हैं। 
ज्ञात हो कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सचिवालयों द्वारा अधिसूचित संसदीय समितियों के पुनर्गठन में कई समितियों के अध्यक्ष बदले गए हैं। कांग्रेस से गृह मामलों और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) संबंधी संसदीय समितियों की अध्यक्षता चली गई है। वहीं विदेश मामलों रक्षा वित्त जैसी महत्वपूर्ण विभागों पर संसदीय समितियों की अध्यक्षता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास है। तृणमूल कांग्रेस के पास किसी संसदीय समिति की अध्यक्षता नहीं है।